दुनिया से अलग हुँ मैं अपने मन की सुनती हूँ
जिंदगी की हर मोड़ पर चुनातियों को चुनती हुँ
मेरे चाहने वाले यूँ मौसम की तरह बदलो न
हम बुरे है तो हमसे दूर रहो न….
पहले तो दोस्ती का हाथ बढाते हो
पल भर के लिए हमदम बन जाते हो
पीठ पीछे क्यूं चुगलियां करते हो
जो कहना है सामने कहो न
हम बुरे है तो हमसे दूर रहो न….
चंचल मन है मेरा खुसमिसाज रहती हूँ
रूठ न जाये जिंदगी कभी जुर्म भी सहती हूँ
नजर न लग जाये कंही इतने पास से गुजरो न
हम बुरे है तो हमसे दूर रहो न….
जिंदगी के किताब से कुछ पने है पलट गए
शिकायत नही है अब सब पहेलियाँ सुलझ गए
बिखर चुके है जो शब्द अब उसे मत समेटों न
हम बुरे है तो हमसे दूर रहो न….
कोयल जैसी चहकने वाली अब चुप हो गयी
मानो जैसे लगता है शुकूँ के पल कन्हि खो गयी
शांत रहने लगी हुँ मैं अब शोर मत करो न
हम बुरे है तो हमसे दूर रहो न….
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